लाखों की नौकरी छोड़ गुजरात के देवेश कर रहे हैं हल्दी की खेती; सालाना 1.25 करोड़ रु टर्नओवर, यूरोप तक भेजते हैं हल्दी दूध पावडर
गुजरात के आणंद जिले के बोरियावी गांव के देवेश पटेल लाखों की नौकरी छोड़कर ऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं। इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग करने वाले देवेश हल्दी, अदरक, अश्वगंधा, नींबू, सब्जियां और अनाज अपने खेतों में उगाते हैं। हाल ही में उन्होंने इम्युनिटी बढ़ाने के लिए हल्दी कैप्सूल लॉन्च किया है, जिसकी काफी डिमांड है। 1.25 करोड़ रु सालाना टर्नओवर है। उनके साथ काफी संख्या में दूसरे भी किसान जुड़े हैं। साथ ही कई विदेशी कंपनियां भी उनके साथ निवेश करना चाहती है। उनके प्रोडक्ट की सप्लाई अमेरिका में भी हो रही है।
देवेश कहते हैं, ‘‘हमारे गांव बोरियावी की हल्दी पूरे देश में फेमस है। कुछ दिन पहले हमने इसका पेटेंट भी कराया है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए मैंने चार साल पहले आर्गेनिक खेती शुरू की। चूंकि मेरा परिवार पहले से ही खेती किसानी से जुड़ा रहा है तो मुझे ज्यादा दिक्कत नहीं हुई। अभी हम 5-7 एकड़ जमीन पर ऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं।’’
देवेश बताते हैं कि इस साल मार्च में हमने इम्युनिटी पावर बढ़ाने वाली हल्दी के कैप्सूल लॉन्च किया है। इसके लिए हमने देसी हल्दी को प्रॉसेस कर उसके 150 तत्वों को एक्टिव किया। क्योंकि, अभी जो हल्दी खाई जाती है, उससे सीमित फायदा ही होता है। दूसरा कि इसका उपयोग लोग नियमित रूप से नहीं करते, जिससे कि हल्दी के पोषक तत्वों का पूरा फायदा शरीर को नहीं मिल पाता। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए हमने हल्दी के कैप्सूल बनाए। हालांकि, कोरोना के चलते इसकी सप्लाई सिर्फ गुजरात और आसपास के क्षेत्रों तक ही सीमित रही। अब हालात सुधर रहे हैं तो देश भर में इसकी सप्लाई शुरू कर रहे हैं।
ग्लोबल लेवल पर कैप्सूल का मार्केट बनाएंगे
देवेश बताते हैं कि फिलहाल हम रोजाना 5000 कैप्सूल का उत्पादन कर रहे हैं। वैश्विक बाजार में इन कैप्सूल का मार्केट खड़ा करने के लिए न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा की कई कंपनियों से बात चल रही है। इस कैप्सूल के लिए हमने 2 साल तक रिसर्च और डवलपमेंट पर काम करने के लिए आणंद कृषि यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों से मार्गदर्शन लिया। इसके बाद कैप्सूल का पेटेंट भी करवाया।
यूरोप के लोग हल्दी का दूध काफी पसंद करते हैं
देवेश बताते हैं कि चॉकलेट पाउडर की तरह हल्दी भी दूध में मिलाकर पी जा सके, हमने ऐसा ही पाउडर बनाया है। यह पूरी तरह से ऑर्गेनिक है और यूरोप के कई देशों में हम एक्सपोर्ट कर रहे हैं।अब इसे भारतीय बाजार में लॉन्च करने की तैयारी चल रही है। इसके लिए उसकी पैकेजिंग और डिजाइन अहमदाबाद में तैयार हो रही है। यह प्रोडक्ट खास तौर पर बच्चों को ध्यान में रखते हुए ही तैयार किया जा रहा है। यूरोप से हमें इसका बहुत अच्छा रिस्पॉन्स मिला है।
वो बताते हैं कि इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी की पढ़ाई के चलते ही मुझे ऑनलाइन मार्केटिंग समझने में मदद मिली। इसकी मदद से मैं सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर काफी अच्छे तरीके से मार्केटिंग कर लेता हूं। कम्युनिकेशन स्किल के चलते इंटरनेशनल कम्युनिटी से डील करना भी आसान हो गया है।
हम ऑर्गेनिक आलू के लिए ग्रोफर और बिग बास्केट जैसी ई-कॉमर्स कंपनियां हमारे संपर्क में हैं। उनसे बातचीत चल रही है और जल्द ही उनके साथ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के लिए एग्रीमेंट हो सकता है।
विदेशी निवेशकों ने इंटरेस्ट दिखाया
वो कहते हैं कि जर्मनी, अमेरिका, फ्रांस जैसे कई देशों की कंपनियों ने निवेश के लिए रुचि दिखाई है। हालांकि, इसे लेकर हमने अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है। आने वाले दिनों में हमें और जमीन खरीदनी की जरूरत पड़ेगी, जिससे ऑर्गेनिक फार्मिंग को और बढ़ाया जा सके। फिलहाल हमारे पास 35 बीघा जमीन है और उसमें से 10 बीघा जमीन का उपयोग तो फार्मिंग के लिए कर रहे हैं। हमारे गांव के काफी लोग विदेशों में रहते हैं और उनकी जमीनें यहीं हैं। इसलिए हम उनसे बात कर रहे हैं। हमारे काम को देखते हुए उनका पॉजीटिव रिस्पॉन्स मिल रहा है।
डुप्लीकेशन बढ़ने का डर
सत्व ऑर्गेनिक का नाम अब फेमस हो चुका है और इसके चलते उसके नाम पर नकली प्रोडक्ट्स भी बाजार में मिल रहे हैं। देवेश पटेल ने बताया कि इस बात को ध्यान में रखते हुए अब हमने पैकेट पर क्यूआर कोड छापने का फैसला किया है। इस कोड को स्कैन करते ही हमारा ऑफिशियल यूट्यूब पेज ओपन हो जाएगा और उस प्रोडक्ट से संबंधित जानकारी ग्राहकों को मिल जाएगी।
पतरवेलिया पान के लिए GI टैग
देवेश बताते हैं कि हमें अभी तक हल्दी, अदरक और कैप्सूल के लिए पेटेंट मिल गया है। उसी तरह अब बोरियावी गांव में उगने वाले पतरवेलिया के पान के लिए जियोग्राफिकल आइडेंटिटी (जीआई) टैग लेने की कोशिश कर रहे हैं। पतरवेलिया के पान से गुजरात का एक फेमस रस बनता है। इसके अलावा उसके पकौड़े और सब्जी भी बनती है।
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